क्या अभिनंदन को हटाने के फैसले से इमरान ख़ान का क़द बढ़ा?

पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान की वायुसेना ने सरहदें पार कर एक-दूसरे के इलाक़े में घुस कर अपनी अपनी ताक़त का इज़हार किया.

इस दरम्यान पाकिस्तान ने भारत का एक मिग विमान पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में मार गिराया और भारत के एक पायलट को अपने कब्ज़े में लिया. बाद में इमरान ख़ान ने भारतीय पायलट को रिहा करने की घोषणा की और कहा कि शुक्रवार को उसे भारत को सुपुर्द कर दिया जाएगा.

पुलवामा की घटना 14 फ़रवरी को हुई थी जबकि दोनों देशों की सेना के बीच हुआ ये वाकया 26 से 28 फ़रवरी के बीच का है. इस दौरान जहां एक ओर भारत के राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया, वहीं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इस मसले को लेकर लगातार मुखर रहे और जब भी कैमरे से मुख़ातिब हुए उन्होंने जंग नहीं करने की बात दोहराई.

पहली बार उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच पहले हुए युद्ध और उससे मची तबाही का उदाहरण दिया तो गुरुवार को संसद में उन्होंने क्यूबा मिसाइल संकट का ज़िक्र किया (सोवियत संघ ने अमरीका के ख़िलाफ़ क्यूबा में अपनी मिसाइलें तैनात कर दी थीं).

ये वो वक़्त था जब पूरी दुनिया पर ही संकट मंडराया हुआ था क्योंकि एक तरफ अमरीका और रूस में तनातनी थी तो दूसरी ओर भारत-चीन के बीच भी युद्ध चल रहा था. इमरान लगातार कहते भी रहे हैं कि जंग किसी मसले का हल नहीं है.

लिहाज़ा, अभिनंदन को छोड़ने का फ़ैसला इमरान ख़ान का एक बहुत अच्छा कदम है. अभिनंदन ने कोई जुर्म तो किया नहीं है, वो केवल युद्धबंदी हैं, वो अपने मुल्क के लिए काम कर रहे थे लिहाज़ा उन्हें छोड़ना इमरान ख़ान का एक अच्छा राजनीतिक फ़ैसला है.

इससे पाकिस्तान और हिंदुस्तान के बीच हालात अच्छे होंगे. इस फ़ैसले से इमरान ख़ान का कद निश्चित ही बढ़ा है. इमरान ख़ान मीडिया के सामने आते हुए कतराते नहीं हैं. जब से इमरान पाकिस्तान की राजनीति में आए हैं वो कैमरे पर आना पसंद करते हैं. वो एक अंतरराष्ट्रीय सेलेब्रिटी रह चुके हैं, क्रिकेटर रहे हैं.

जहां क्रिकेट खेली जाती है वहां वो बेहद मारूफ़ (प्रसिद्ध) हैं. उनकी इज्ज़त है, जिसका वो फ़ायदा उठाते हैं. उनकी कम्यूनिकेशन स्किल भी अच्छी है. वो जो भी बात करते हैं उससे भी उन्हें फ़ायदा मिलता है.

वो एक जननेता हैं, जिसका वो फ़ायदा उठाते हैं और ऐसे नेता सियासत में छा जाते हैं. उसका इस्तेमाल करना हर राजनेता का हक़ है, जिसे वो समझते हैं कि उसमें वो अच्छे हैं.

इस वक़्त पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच जो हालात हैं. उसका पाकिस्तान पर बहुत असर पड़ा है और मौजूदा इमरान ख़ान सरकार यह चाहती है कि अमन होना चाहिए. वो चाहते हैं कि जो मुद्दे हैं उन्हें बातचीत के जरिए सुलझाया जाना चाहिए. वो ग़लतबयानी नहीं कर रहे, वो सच्चे दिल से बात कर रहे हैं.

पुलवामा की घटना के बाद उन्होंने हिंदुस्तान की उस शर्त को भी मान लिया कि सबसे पहले चरमपंथ पर बात होनी चाहिए. पाकिस्तान पहले से ही अपनी पश्चिमी सीमा पर चरमपंथ के ख़िलाफ़ जंग लड़ रहा है. कहीं न कहीं पाकिस्तान की सेना भी चाहती है कि जंग नहीं हो और बातचीत से मुद्दे को हल किया जाए.

इमरान जिस दिशा में पाकिस्तान को ले जाना चाहते हैं वो सही है. अफ़ग़ानिस्तान के साथ लड़ाई को ख़त्म करने की दिशा में उन्होंने कार्रवाई तेज़ की. वो चाहते हैं कि अफ़ग़ानिस्तान में हालात सामान्य हों और जंग ख़त्म हो. अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी चाहते हैं कि यह ‘न ख़त्म होने वाली लड़ाई’ अब ख़त्म हो.

करतारपुर कॉरिडोर को उन्होंने सिखों के लिए खोलने की पहल की. वो चाहते हैं कि बगैर वीज़ा लिये सिख यहां आएं और दर्शन करें, यह एक अच्छी कोशिश थी.

ये वो कुछ चीज़ें हैं जो इमरान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद की हैं और अभी उन्हें प्रधानमंत्री बने महज पांच महीने ही हुए हैं.

ऐेसे में पाकिस्तान की जो आर्थिक स्थिति है उसे उन्होंने यदि नियंत्रित कर लिया और अगले दो-तीन सालों में पाकिस्तान की ग्रोथ रेट अच्छी हो गई तब कह सकते हैं कि उन्होंने कोई काम किया है. फिलहाल तो यही कह सकते हैं कि उनके कदम सकारात्मक हैं.

साद मोहम्मद,
(बीबीसी से साभार)

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